Sunday, November 13, 2016

ममता केजरीवाल की बोखलाहट और नोट बंदी



नोट बदलाव और बैन पर यूँ ही नहीं है ममता बनर्जी का विरोध और अरविन्द केजरीवाल का रोज रोज विडियो प्रसारित करना, प्रेस वार्ता करना ... 

क्या आपको मालूम है कि भारत में सबसे ज्यादा फ्रॉड कंपनी से व्यापार कहाँ होता है ? हवाला से पैसे और जाली नोट की खेप भारत में पहुँचाने का सबसे बड़ा दरवाज़ा कहाँ है ? .... वो है पश्चिमी बंगाल .. पश्चिमी बंगाल में एक तरह से नकली नोटों की सप्लाई और हवाला का उद्योग है .. जिन्होंने कोलकाता से गौहाटी की यात्रा ट्रैन से की होगी उन्होंने ट्रैन की खिड़की से बांग्ला देश सीमा देखा होगा, ये सीमा गंगा के जल में भी पोस्ट लगा के दिखाया गया है .. पश्चिमी बंगाल का फरक्का, मालदा सीधे बांग्ला देश से जुड़ा है ... अब अगर आप पहाड़ी इलाकों के बंगाल में जाएंगे तो इसकी सीमा उत्तर में नेपाल से जुड़ते हैं। पश्चिमी बंगाल से लगे नेपाल के अंदर ISI ने अपने प्यादे लगा के बहुत अड्डे बनाए हैं। नेपाल और बांग्ला देश से लगे सीमावर्ती प. बंगाल के इन इलाकों में नकली नोट की बड़ी खेप आती है ... ये नकली नोट फिर अलग अलग रास्तों से नक्सलबाड़ी पहुँचाया जाता है .. यहाँ से वामपंथी और TMC के लोग इन नकली नोटों को बैच में बदलते हैं ... इससे बहुत सारा असली काला धन पैदा करते हैं .. हवाला के जरिये इन रुपयों से वामपंथी नक्सलियों को हथियार बेंचते हैं। पहले TMC वाले अपने हिस्से का अपने हिसाब से बांटते थे .. लेकिन पिछले 2 -3 बर्षों से TMC वालों ने भी उड़ीसा - झारखण्ड के नक्सली गिरोह की सम्बन्ध बना लिए और उनसे व्यापार करते हैं जिसमे हथियार, मादक पदार्थ, खाने पीने का सामान और कपडे आदि हैं। भारत में इस तरह समानांतर अर्थ व्यवस्था संचालित करने के साझीदार हैं वामपंथी, TMC, नक्सली, तस्कर और अपराधी। इस demonetization के कदम ने इस पूरे गठजोड़ को नेस्तनाबूद कर दिया है, नकली नोट कबाड़ हो गए, हवाला के पैसे गोबर हो गए, नक्सलियों द्वारा जमीन में ट्रंक भर के दबाए रुपये वहीँ सड़ेंगे .... ये सब सड़क पर आ गए हैं, कंगाल हो गए है ... 
काफी समय से नक्सली दिल्ली में सीधे अड्डा बनाना चाहते थे। बौद्धिक आतंकियों और बौद्धिक नक्सली जो बड़े बड़े लेख लिखते हैं और TV पर ज्ञान देते हैं उनके सम्बन्ध से AAP ने उनको इसमें मदद करने का काम किया। दिल्ली की जनता ने सस्ते बिजली पानी और फ्री wifi के झांसे में आकर नक्लसियों और हवाला कारोबारियों को सत्ता सौंप दिया। AAP ने खालिस्तानी अलगाववादियों और अरब के वहाबी कट्टरपंथियों से काफी चन्दा इकठ्ठा किया है। इनको यहाँ से पैसे मिलने के अलावा पश्चिमी बंगाल और दंडकारण्य के जंगलों से भी माल भेजने के एवज में पैसा आता हैं। ... कुछ हफ्ते पहले दिल्ली में नक्सलियों का पकड़ा जाना, JNU में हथियार मिलना .. AAP के मंत्री गोपाल राय का जगदलपुर (बस्तर) दौरा सब लोगों को याद होगा। 2015 में दिल्ली चुनाव के समय AAP वालों को शहरी नक्सली कहना कोई ऐसे ही नहीं था, जरूर इस पर केंद्र सरकार को खुफिया विभाग से जानकारी मिली होगी। अरविन्द केजरीवाल के सारे चंदे खर पतवार हो गए हैं, गोपाल राय जो भी डील नक्सलियों से कर के आया था वो कचरा हो गया है ... जिसकी इतनी मेहनत से कमाया गया चन्दा और डील अचानक से कचरा हो गया हो उससे पूछो उसके दिल की "हलालत" ....

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Thursday, August 04, 2011

हरियाणा सरकार गाँधी परिवार पर ही मेहरबान क्यों?


जमीन अधिग्रहण पर हरियाणा सरकार की नीतियों की देश भर में तारीफ की जाती है। किसानों का हक ना मारा जाए और उन्हें जमीन का सही मुआवजा मिले इसके लिए कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी हुड्डा सरकार की नीतियों की ही मिसाल देते हैं। लेकिन वही हुड्डा सरकार अगर एक ही इलाके में किसानों की जमीन पर कब्जा कर ले लेकिन एक ट्रस्ट की जमीन को छोड़ दे तो दावों पर सवाल लाजिमी हैं। खासकर तब जब ट्रस्ट राजीव गांधी के नाम पर हो और उसकी चेयरपर्सन खुद सोनिया गांधी हों।

मामला गुड़गांव के उल्लावास गांव में इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का है। यहां पर राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की देखरेख में एक अस्पताल बनना है। आठ एकड़ की इस जमीन पर एक बड़े विवाद का पौधा पनप रहा है। इस जमीन के आसपास जितनी भी जमीन है उसे हरियाणा सरकार अधिगृहित कर चुकी है। लेकिन हरियाणा की हुड्डा सरकार ने 6 दिसंबर 2010 को चौंकाने वाला फैसला लिया।

इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की जमीन को अधिग्रहण से अलग कर दिया। यानी आसपास के किसानों और दूसरी सामाजिक संस्थाओं की जमीन पर तो सरकार ने कब्जा कर लिया लेकिन आई हॉस्पिटल की जमीन को कब्जा करने के बाद छोड़ दिया गया। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ तो जवाब ट्रस्ट के कर्ताधर्ताओं के नाम में छुपा है। राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की चेयरपर्सन खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। जबकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ट्रस्ट के सदस्य हैं।
अगर सरकार कोई भी जमीन अधिग्रहण के बाद उसके मालिक को वापस लौटाती है तो इसके पूरे नियम हैं। खुद हरियाणा सरकार के दस्तावेज गवाह हैं कि अधिग्रहण के बाद कोई जमीन तब तक वापस नहीं दी जा सकती जब तक किः-


1. जमीन पर निर्माण कार्य पूरा हो चुका हो।
2. जमीन पर पहले से ही कोई फैक्ट्री या दुकान चल रही हो। 3. जमीन पर किसी धार्मिक संस्था ने इमारत बनवाई हो।

4. जमीन अधिग्रहण के एक साल के भीतर ही अपील की गई हो।
5. जमीन का मालिक कॉलोनी के लिए जमीन बेच चुका हो। 6जमीन का मालिक अदालत से आदेश लेकर आए।
लेकिन अदालत में आरोप लगाए जा रहे हैं कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट तो सरकार के बनाए 6 नियमों में से किसी को भी पूरा नहीं करता, फिर आखिर उसे कैसे जमीन लौटाई गई? दरअसल हरियाणा सरकार ने गुड़गांव में रिहाइशी और कमर्शियल इलाके के लिए सेक्टर-58 से लेकर सेक्टर-63 और सेक्टर-65 से लेकर सेक्टर-67 तक बसाने की योजना बनाई। इसके लिए बाकायदा साल 2009 में नोटिफिकेशन जारी करके 1417 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया। इसमें वो जमीन भी शामिल थी जो राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को ग्राम पंचायत ने लीज पर दी थी। बाद में 46 एकड़ जमीन वापस कर दी गई और यहीं तमाम लोग भड़क उठे।
65 लोगों ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के फैसले को चुनौती दी है। उन्होंने एक और नियम के तोड़े जाने का आरोप लगाया है। नियम कहता है कि अगर अधिग्रहित जमीन सरकार वापस करती है तो ये जमीन उसके मालिक को वापस की जाती है, लेकिन यहां अधिग्रहण रद्द करने के बाद वो जमीन ग्राम पंचायत को नहीं लौटाई गई बल्कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दे दी गई। आखिर क्यों?सरकार ने जिस 1417 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया उसकी चपेट में पद्मश्री से सम्मानित मशहूर चित्रकार अंजलि इला मेनन की जमीन भी आई। उनके वकील का आरोप है कि सरकार किसी ट्रस्ट को ये कहकर फायदा नहीं पहुंचा सकती कि वो एक चैरिटेबल ट्रस्ट है। उनकी मानें तो मेनन भी एक चैरिटेबल ट्रस्ट चलाती हैं लेकिन उन्हें किसी तरह की छूट नहीं दी गई और इसलिए अब अदालत में हुड्डा सरकार को सांप सूंघा हुआ है। अदालत में कई बार पूछे जाने पर भी राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का नाम तक लेने से डर रही है सरकार।
दस्तावेजों से घिरी हरियाणा सरकार ने कोर्ट में बचने के लिए दांव खेलना शुरू कर दिया है। ट्रस्ट का नाम आते ही सरकार पूरे मामले की समीक्षा के लिए हाई पावर कमेटी बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर कोर्ट ने हरियाणा सरकार को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि 'सरकार जब रंगे हाथों पकड़ी गई है तो वो मामले से भागने की फिराक में है।' जस्टिस जसबीर सिंह और जस्टिस ऑगस्टीन मसीह की बेंच ने कहा कि 'जिस तरह का व्यवहार सरकार आम जनता के साथ कर रही है अदालत ये कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती।'अदालत ने कहा कि 'वो इस पक्षपात को देख कर हैरान है और सरकार को इसे अब रोकना होगा।' अदालत ने सरकार को हिदायत दी कि वो सबके साथ अच्छा और समान बर्ताव करे। जाहिर है पूरे मामले ने हरियाणा सरकार की जमीन अधिग्रहण नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब आईबीएन-7 ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में इस केस की पैरवी कर रहे एडवोकेट जनरल से बात करने की कोशिश की तो वो कैमरे से बचते हुए निकल गए। हरियाणा सरकार फिलहाल इस मसले पर कुछ नहीं बोलना चाहती।
अक्सर राहुल गांधी गैर-कांग्रेसी राज्यों में जाकर हरियाणा की जमीन अधिग्रहण नीति की तारीफ करते हैं लेकिन जिस तरीके से हुड्डा सरकार ने राजीव गांधी ट्रस्ट को नियम-कायदे ताक पर रखकर छूट दी उससे तो यही ऐहसास होता है कि हरियाणा में जमीन अधिग्रहण का डंडा सिर्फ कमजोर जनता पर चलता है जबकि प्रभावशाली लोगों को हरियाणा सरकार कानून ताक पर रखकर फायदा पहुंचा देती है। बहरहाल सरकार की इस नीति से कोर्ट नाराज है और अब हरियाणा सरकार को हाईकोर्ट के सामने इस मामले पर अपनी सफाई देनी है।

नोट:- आईबीन और एनडीटीवी की खबर के अधार पर

Wednesday, August 03, 2011

हरियाणा सरकार गाँधी परिवार पर ही मेहरबान क्यों?


जमीन अधिग्रहण पर हरियाणा सरकार की नीतियों की देश भर में तारीफ की जाती है। किसानों का हक ना मारा जाए और उन्हें जमीन का सही मुआवजा मिले इसके लिए कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी हुड्डा सरकार की नीतियों की ही मिसाल देते हैं। लेकिन वही हुड्डा सरकार अगर एक ही इलाके में किसानों की जमीन पर कब्जा कर ले लेकिन एक ट्रस्ट की जमीन को छोड़ दे तो दावों पर सवाल लाजिमी हैं। खासकर तब जब ट्रस्ट राजीव गांधी के नाम पर हो और उसकी चेयरपर्सन खुद सोनिया गांधी हों।

मामला गुड़गांव के उल्लावास गांव में इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का है। यहां पर राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की देखरेख में एक अस्पताल बनना है। आठ एकड़ की इस जमीन पर एक बड़े विवाद का पौधा पनप रहा है। इस जमीन के आसपास जितनी भी जमीन है उसे हरियाणा सरकार अधिगृहित कर चुकी है। लेकिन हरियाणा की हुड्डा सरकार ने 6 दिसंबर 2010 को चौंकाने वाला फैसला लिया।

इंदिरा गांधी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की जमीन को अधिग्रहण से अलग कर दिया। यानी आसपास के किसानों और दूसरी सामाजिक संस्थाओं की जमीन पर तो सरकार ने कब्जा कर लिया लेकिन आई हॉस्पिटल की जमीन को कब्जा करने के बाद छोड़ दिया गया। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ तो जवाब ट्रस्ट के कर्ताधर्ताओं के नाम में छुपा है। राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट की चेयरपर्सन खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। जबकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ट्रस्ट के सदस्य हैं।

अगर सरकार कोई भी जमीन अधिग्रहण के बाद उसके मालिक को वापस लौटाती है तो इसके पूरे नियम हैं। खुद हरियाणा सरकार के दस्तावेज गवाह हैं कि अधिग्रहण के बाद कोई जमीन तब तक वापस नहीं दी जा सकती जब तक किः-


1. जमीन पर निर्माण कार्य पूरा हो चुका हो।
2. जमीन पर पहले से ही कोई फैक्ट्री या दुकान चल रही हो। 3. जमीन पर किसी धार्मिक संस्था ने इमारत बनवाई हो।

4. जमीन अधिग्रहण के एक साल के भीतर ही अपील की गई हो।
5. जमीन का मालिक कॉलोनी के लिए जमीन बेच चुका हो। 6जमीन का मालिक अदालत से आदेश लेकर आए।

लेकिन अदालत में आरोप लगाए जा रहे हैं कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट तो सरकार के बनाए 6 नियमों में से किसी को भी पूरा नहीं करता, फिर आखिर उसे कैसे जमीन लौटाई गई? दरअसल हरियाणा सरकार ने गुड़गांव में रिहाइशी और कमर्शियल इलाके के लिए सेक्टर-58 से लेकर सेक्टर-63 और सेक्टर-65 से लेकर सेक्टर-67 तक बसाने की योजना बनाई। इसके लिए बाकायदा साल 2009 में नोटिफिकेशन जारी करके 1417 एकड़ जमीन का सरकार ने अधिग्रहण कर लिया। इसमें वो जमीन भी शामिल थी जो राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को ग्राम पंचायत ने लीज पर दी थी। बाद में 46 एकड़ जमीन वापस कर दी गई और यहीं तमाम लोग भड़क उठे।
65 लोगों ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सरकार के फैसले को चुनौती दी है। उन्होंने एक और नियम के तोड़े जाने का आरोप लगाया है। नियम कहता है कि अगर अधिग्रहित जमीन सरकार वापस करती है तो ये जमीन उसके मालिक को वापस की जाती है, लेकिन यहां अधिग्रहण रद्द करने के बाद वो जमीन ग्राम पंचायत को नहीं लौटाई गई बल्कि राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट को दे दी गई। आखिर क्यों?
सरकार ने जिस 1417 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया उसकी चपेट में पद्मश्री से सम्मानित मशहूर चित्रकार अंजलि इला मेनन की जमीन भी आई। उनके वकील का आरोप है कि सरकार किसी ट्रस्ट को ये कहकर फायदा नहीं पहुंचा सकती कि वो एक चैरिटेबल ट्रस्ट है। उनकी मानें तो मेनन भी एक चैरिटेबल ट्रस्ट चलाती हैं लेकिन उन्हें किसी तरह की छूट नहीं दी गई और इसलिए अब अदालत में हुड्डा सरकार को सांप सूंघा हुआ है। अदालत में कई बार पूछे जाने पर भी राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का नाम तक लेने से डर रही है सरकार।
दस्तावेजों से घिरी हरियाणा सरकार ने कोर्ट में बचने के लिए दांव खेलना शुरू कर दिया है। ट्रस्ट का नाम आते ही सरकार पूरे मामले की समीक्षा के लिए हाई पावर कमेटी बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर कोर्ट ने हरियाणा सरकार को जमकर फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि 'सरकार जब रंगे हाथों पकड़ी गई है तो वो मामले से भागने की फिराक में है।' जस्टिस जसबीर सिंह और जस्टिस ऑगस्टीन मसीह की बेंच ने कहा कि 'जिस तरह का व्यवहार सरकार आम जनता के साथ कर रही है अदालत ये कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती।'
अदालत ने कहा कि 'वो इस पक्षपात को देख कर हैरान है और सरकार को इसे अब रोकना होगा।' अदालत ने सरकार को हिदायत दी कि वो सबके साथ अच्छा और समान बर्ताव करे। जाहिर है पूरे मामले ने हरियाणा सरकार की जमीन अधिग्रहण नीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जब आईबीएन-7 ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में इस केस की पैरवी कर रहे एडवोकेट जनरल से बात करने की कोशिश की तो वो कैमरे से बचते हुए निकल गए। हरियाणा सरकार फिलहाल इस मसले पर कुछ नहीं बोलना चाहती।
अक्सर राहुल गांधी गैर-कांग्रेसी राज्यों में जाकर हरियाणा की जमीन अधिग्रहण नीति की तारीफ करते हैं लेकिन जिस तरीके से हुड्डा सरकार ने राजीव गांधी ट्रस्ट को नियम-कायदे ताक पर रखकर छूट दी उससे तो यही ऐहसास होता है कि हरियाणा में जमीन अधिग्रहण का डंडा सिर्फ कमजोर जनता पर चलता है जबकि प्रभावशाली लोगों को हरियाणा सरकार कानून ताक पर रखकर फायदा पहुंचा देती है। बहरहाल सरकार की इस नीति से कोर्ट नाराज है और अब हरियाणा सरकार को हाईकोर्ट के सामने इस मामले पर अपनी सफाई देनी है।

नोट:- आईबीन और एनडीटीवी की खबर के अधार पर